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लेखनी कहानी -22-Oct-2022 आपने तो हमारी दीवाली मना दी, समधन जी

"सुनो, जल्दी तैयार हो जाओ । पांच बजने वाले हैं । लेट हो जायेंगे" । दीप कुमार ने ऊंची आवाज में कहा 
"आ रही हूं बाबा । आप तो चिल्लाना शुरू कर देते हैं । बस दो मिनट में आती हूं" ज्योति वहीं से चिल्लाकर बोली 
दीप को पता था कि ज्योति की दो मिनट कितनी होती हैं । ज्योति ही क्या हर स्त्री की दो मिनट बीस मिनट के बराबर होती हैं । मगर पुरुषों के पास दांत पीसने के अलावा और है ही क्या ? 
ज्योति और दीप अपनी पुत्री ज्योत्सना को लेकर होटल ललित पहुंचे । वहां पर अशोक और अनीता उनका इंतजार कर ही रहे थे । उनका पुत्र अभिनव भी उनके साथ ही था । दरअसल ज्योत्सना और अनुभव के रिश्ते के लिये वे लोग वहां पर आये थे । 
अनीता को देखकर दीप चौंका । उसे ऐसा लगा जैसे उसे पहले कभी देखा है । उसने अपने दिमाग के सारे घोड़े दौड़ा लिये मगर कुछ याद नहीं आया । एक वहम समझकर उसने अपने विचारों को विराम लगाया और बात आगे बढाई 
"हमारी बेटी ज्योत्सना ने बी ए , एल एल बी इसी साल किया है । वह न्यायिक सेवाओं की तैयारी कर रही है । देखते हैं कि वह एक न्यायिक मजिस्ट्रेट बन पायेगी या नहीं" ? 
"बहुत बढिया । अभिनव ने भी इस साल एम टेक किया है । बीस का पैकेज है अभी । आगे इसकी परफॉर्मेंस पर निर्भर करेगा कि इसमें कितना इजाफा होता है" । अशोक ने भी बातों का सिलसिला चालू रखा ।

दोनों परिवार एक दूसरे के बारे में जानकारी जुटाने में व्यस्त हो गये । ज्योत्सना और अनुभव को दूसरे कमरे में भेज दिया गया जिससे वे निस्संकोच होकर आपस में बातें कर सकें और एक दूसरे के मन को टटोल सकें । 
दीप की निगाहें बार बार अनीता के चेहरे पर जाती और हर बार उसे ऐसा लगता कि अनीता का चेहरा देखाभाला सा है मगर उसे कुछ याद नहीं आ रहा था । अनीता की नजरें झुकी हुई थीं । वह कुछ बोल भी नहीं रही थी । 

इतने में ज्योत्सना और अनुभव अपने कमरे से बाहर निकल आये । अशोक अनुभव के पास एक कोने में चला गया और ज्योति ज्योत्सना को लेकर दूसरे कोने में चली गई । वहां पर दीप और अनीता दोनों अकेले रह गये थे ।
"माफ कीजियेगा मैम , पता नहीं मुझे ऐसा क्यों लग रहा है कि मैंने आपको पहले कहीं देखा है" ? दीप अपनी जिज्ञासा रोक नहीं पाया था ।
"जी, आप सही कहते हैं" अनीता ने बड़े सधे हुए शब्दों में जवाब दिया ।
"क्या ? हम लोग पहले कभी मिले थे" ? दीप की आंखें विस्मय से फैल गईं ।
"जी" संक्षिप्त सा जवाब था अनीता का 
"कब और कहां" ? 
"जी, आज से कोई तीस साल पहले । हमारे घर में" 
"आपके घर में ? वो कैसे" ? 
"तब आप मुझे देखने आये थे" अनीता का स्वर एकदम ठंडा था । 

अब दीप को सारी घटना याद आ गई । तीस साल पहले वह एक कॉलेज में प्रोफेसर था । दीवाली की छुट्टियों में वह अपने घर आया था । उसके पिताजी ने उसके रिश्ते के लिये आने वाले समस्त लोगों को बता दिया था कि दीप दीपावली पर चार दिन के लिए आयेगा । इस प्रकार धन तेरस और छोटी दीवाली को आठ लड़कियां देखने का प्लान बना लिया गया । चार लड़कियां तो भरतपुर की ही थीं और चार दूसरे शहरों की थीं । दूसरे शहरों की लड़कियों को दीप के पापा ने अपने शहर में बुला लिया था और छोटी दीवाली को वे लोग भरतपुर चले गये थे चारों लड़कियां देखने के लिये । अनीता भी उनमें से एक थी । अनीता चूंकि सांवले रंग की थी और उसे एकदम गोरी मैम चाहिए थी इसलिए उसने अनीता को "रिजेक्ट" कर दिया था । 

आज वक्त ने क्या करवट बदली है । दीप की बेटी ज्योत्सना के लिए उसी अनीता जिसे कभी दीप ने रिजेक्ट कर दिया था , के बेटे अभिनव के रिश्ते की बात चल रही है । और मजे की बात तो यह है कि दीप और ज्योति दोनों ही गोरे चिट्टे हैं मगर ज्योत्सना थोड़ी सांवली है । हालांकि उसके फीचर्स बहुत अच्छे हैं । भगवान की लीला शायद इसीलिए अपरंपार है । 

अनीता उस वाकये को कैसे भूल सकती थी ? उसके लिए दीप का रिश्ता पहला रिश्ता था ।  जब उसने दीप को देखा था तो वह पहली नजर में ही उसे दिल दे बैठी थी । पर दीप ने जब उसे रिजेक्ट कर दिया तो उसका दिल टूट गया था । उसके लिए यह दुनिया बेगानी सी हो गई थी । वह गम और खामोशी के समंदर में डूब गई थी । तब उसने मन ही मन दीप को कितना कोसा था । 
मगर ऊपरवाला जब एक रास्ता बंद करता है तो चार रास्ते खोल भी देता है । तभी अशोक से रिश्ते की बात चली और उन्हें अनीता पसंद आ गई । ईश्वर ने एक गोरा भूरा बेटा भी दे दिया उसे । अब मामला उल्टा था । अभिनव एक राजकुमार जैसा था और ज्योत्सना एक साधारण सी लड़की । दीप एकदम से निराश हो गया था । उसे लगा कि अभिनव ज्योत्सना को पसंद नहीं करेगा । और यदि वह पसंद भी कर लेगा तो अनीता इस संबंध को पसंद नहीं करेगी । आखिर वह चोट खाई नागिन जो थी । यह सोचकर वह उठकर खड़ा हो गया 
"मैम, मैं उस दिन की घटना के लिए शर्मिंदा हूं । हो सके तो मुझे क्षमा कर दीजिएगा" । उसने नीची नजरें किये हुए ही हाथ जोड़ दिये । 
"नहीं भाईसाहब, आप नाहक ही शर्मिंदा हो रहे हैं । आपने दुनिया से हटकर तो कोई काम नहीं किया था । अपनी पसंद का जीवनसाथी चुनने का अधिकार सबको है । आपके दिल को जो अच्छा लगा उसे आपने पसंद किया । इसमें कुछ गलत नहीं है । शादी तो किसी एक से ही होती है जबकि रिश्ते तो कई आते हैं" । अब अनीता के चेहरे पर विश्वास, आंखों में चमक और अधरों पर मुस्कान थी । दीप का मन भी थोड़ा हलका हो गया था । 

सब लोग एक बार फिर से एक साथ बैठे । खूब गपशप हुई और अशोक ने यह कहते हुये कि कल दीपावली के दिन आपको बता देंगे कि आगे क्या करना है । दीप और ज्योति बुझे मन से अपने घर चले गये । 

दीपावली का त्यौहार हर बार की तरह इस साल भी मनाया जा रहा था । ज्योति के चेहरे पर उल्लास की चांदनी फैल रही थी मगर दीप का चेहरा अमावस की रात बना हुआ था । वह सोच रहा था कि यदि उन लोगों को रिश्ता पसंद होता तो वे कल ही हां कर देते । उन्होंने हां नहीं की और मामला टाल दिया इससे सिद्ध होता है कि उन्हें रिश्ता पसंद नहीं है । ज्योत्सना भी तब से खामोश सी है । लगता है कि वह भी शायद अभिनव को पसंद करती है । 
दीप का पूरा दिन इसी उहापोह में गुजर गया । उसका किसी काम में भन नहीं लग रहा था । उसे उस साल की दीवाली याद आ रही थी जब उसने सात लड़कियों को रिजेक्ट किया था । उन्हें और उनके घरवालों को कैसा लगा होगा तब ? सोच सोचकर उसका दिल बैठा जा रहा था । 

"सुनो , ये दीपक बाहर रख दो । दीपावली पर मिट्टी के दीपक जलाये बिना दीपावली अधूरी सी लगती है । इससे कई परिवारों की दीवाली रोशन हो जाती है जैसे दीपक बनाने वालों की, तेल निकालने वालों की और बाती बनाने वालों की । इसके अलावा घर में दीपक की रोशनी से जो सकारात्मकता आती है वह चायनीज लाइट में कहां है" ? दीप की तंद्रा भंग करती हुई ज्योति की आवाज उसे अपने कानों में सुनाई दी ।

दीप दीपकों की थाली लेकर घर के बाहर आ गया और गेट के बाहर दीपक सजाने लगा । इतने में एक ऑडी कार आकर रुकी और उसमें से अशोक, अनीता और अनुभव एक साथ बाहर निकले । उन्हें देखकर दीप एकदम से चौंक गया । उससे कुछ कहते नहीं बना । 
"दीपावली की बहुत बहुत बधाइयां समधी जी" कहकर अशोक ने दीप को गले लगा लिया । 
"आपकी ज्योत्सना अब हमारे घर की रोशनी बन गई है भाईसाहब" कहते हुये अनीता ने दोनों हाथ जोड़कर झुककर दीप का अभिवादन किया । 
"दरअसल मैं तो यह खुशखबरी फोन से दोपहर में ही देने वाला था मगर अनीता जी ने कहा कि आज दीपावली के त्यौहार पर आपके घर जाकर ही यह खुशखबरी देंगे और दोनों परिवार एक साथ दीपावली मनाएंगे" । अशोक की उल्लास भरी आवाज दीप को भाव विभोर कर गई ।
दीप की आंखों में अनीता के लिये कृतज्ञता के भाव थे । वह इतना ही कह पाया 
"आपने तो हमारी दीवाली मना दी, समधन जी" और वह मुस्कुरा दिया 

श्री हरि 
22.10.22 


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2 Comments

Mahendra Bhatt

23-Oct-2022 04:25 PM

वक्त कब करवट बदलकर किस पाले में जाएगा यें सबको जानना चाहिए, जो इस बात को जान गया वो कभी भी मुर्खतापूर्ण बातें नहीं करेगा।

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Aliya khan

22-Oct-2022 10:40 PM

कहते है ना दुनिया गोल है कहने में ये बात भले ही बुरी लगे पर ये सत्य है जो बोते है वो ही काटना पड़ता है इसलिए तो कहते है किसी को कभी गलत नही कहना चाहिए किया पता कब किस्मत करवट ले और अगले ही पल हमारे साथ भी वो ही हो

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